बब्याल में बना बसंती माता का मंदिर व तालाब 169 साल पुराना है। इसका निर्माण स्व. सेठ लाला मिरीमल ने 1854 में करवाया था। परंपरा के अनुसार साल में एक बार जेठ के दशहरे पर मेला भरता है, जिसमें दूरदराज से गांवाें व शहरों से लाेग आकर माथा टेककर मनोकामनाएं मांगते हैं। उस दाैरान मंदिर में भागवत भी हाेती है। ये जानकारी मंदिर के पुजारी पंडित आनंद पाठक व ट्रस्ट के प्रधान बिल्लू राणा ने दी। वहीं, पंडित आनंद पाठक ने बताया कि इस मंदिर के बारे में लाेगाें में ये भी प्रचलित है कि यहां कुछ साल पहले तक पूर्णिमा व अमावस्या के दिन मूछाें वाला विशाल सांप भी दर्शन देने आता था, जिसे देखकर लाेग डर जाते थे।
मंदिर में स्थापित बसंती माई व शिवलिंग के दर्शन करने के लिए लाेग दूर-दराज से आते हैं। इसी के साथ मंदिर में घड़ा टांगने की दसाई की परंपरा भी बरसाें से चली आ रही है। इस परंपरा के अनुसार किसी व्यक्ति के संस्कार के बाद मंदिर में पीपल के पेड़ पर पानी का घड़ा भरकर टांग दिया जाता है जिसमें जाै, तिल, शहद डालकर टांग देते हैं। उसके ऊपर कपड़ा बांधकर एक सुराख कर दिया जाता है। 10 दिन तक लगातार सुबह व शाम काे पानी इसमें भरा जाता है। 10वें दिन हवन करके इसी मंदिर के तालाब के पास पिंडदान करवा दिया जाता है।
उसके बाद घड़ा उतार लिया जाता है। मंदिर में धूना भी बरसाें से जल रहा है। इस मंदिर के देखरेख बसंती माता मंदिर ट्रस्ट के प्रधान बिल्लू राणा, सेक्रेटरी तेजपाल, कैशियर लोकेश व सदस्य कर रहे हैं। ट्रस्ट की तरफ से समय-समय पर मंदिर की मरम्मत करवाई जाती है।